कहानी-Story with Health tips
ये कहानी है एक गुरुकुल की जब वँहा पे गुरु अपने शिष्य को आशीर्वाद दे रहे थे कि थोड़ी ही दूर पर आपस में लड़ते दो स्टूडेंट की आवाज उन्हें सुनाई दी। उन्हें हॉस्टल में आए अधिक समय नहीं हुआ था |
गुरु ने उनके पास पहुंचकर उन्होंने पूछा- क्या बात है? क्यों झगड़ रहे हो तुम दोनों?
एक ने बोला- गुरुजी! आज मकर संक्रांति के दिन मैं आपको तिल के लड्डू खिलाना चाहता था। लेकिन मेरा यह सहपाठी कहता है कि पहले मैं खिलाऊंगा। जब विचार पहले मेरे मन में आया है तो मुझे पहले खिलाने का अधिकार है। लेकिन यह बेईमानी कर रहा है। इसे मुझसे ईर्ष्या है। आप ही बताएं कि उचित क्या है?
गुरुजी बोले- बच्चों! मैं तुम दोनों की भावना समझता हूं। लेकिन तुम्हारी भावना में अभी इस त्योहार की सच्ची भावना सम्मिलित नहीं है। इसलिए तुम आपस में झगड़ रहे हो। मकर संक्रांति के दिन तिल के लड्डू इसी भाव से खिलाए जाते हैं कि हमारे बीच जो भी मतभेद या मनभेद हैं।वे नष्ट हों और हम बैर भाव भुलाकर मीठा-मीठा बोलें। इसलिए लड्डू देते वक्त हम कहते हैं- 'तिळ गुळ घ्या आणि गोड गोड बोला' यानी 'तिल गुड़ लो और मीठा मीठा बोलो।' और तुम कितना मीठा बोल रहे हो, यह तुम स्वयं निर्णय करो। अतः मकर संक्रांति के सच्चे भाव को आत्मसात करते हुए पहले मुझे नहीं एक-दूसरे को तिल के लड्डू खिलाओ। गुरु की बात सुनकर शिष्यों ने उनके कहे का अनुसरण किया और एक-दूसरे को सच्चे हृदय से लड्डू खिलाने के बाद गले लगा लिया।क्या बात है! कितना अनोखा अंदाज था गुरु का अपने शिष्यों को सिखाने का। वे न केवल अपने शिष्यों को सिखा गए बल्कि आज भी हम जैसे लोगों को सिखा रहे हैं। तो मकर संक्रांति पर आपसे भी एक आग्रह है कि आज जब आप काम पर जाएं तो तिल के लड्डू साथ ले जाएं और सभी स्नेहीजनों के साथ ही उस सहकर्मी को अवश्य खिलाएं जिसके साथ आजकल आपकी पटरी नहीं बैठ रही है। हां, शर्त यह है कि भाव भी शुद्ध होना चाहिए। लड्डू खिलाने के साथ ही आज से उससे मीठी-मीठी बातें भी करना शुरू कर दें। कुछ समय बाद निश्चित ही आपको चमत्कारिक परिणाम मिलने लगेंगे और आपके दफ्तर की हवा भी बदलेगी। लेकिन याद रहे कि आप अपनी इस सफलता पर फूल मत जाना। वरना वही होगा जो पतंग और गुब्बारे के साथ होता है। यही है आज का गुरुमंत्र।
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