शनिवार, 31 अगस्त 2024

NEET Admission- शिक्षा और चिकित्सा में प्रवेश में आरक्षण

 विकसित भारत का सपना नहीं होगा पूरा

NEET and Reservation

यह सर्व विधित हैं की जब नींव ही कमजोर होगी तो वंहा पर बड़ी और सुन्दर ईमारत खड़ी नहीं हो सकती हैं। किसी भी देश दुनिया में विकास का बुनियादी आधार होता हैं वंहा की शिक्षा और चिकित्सा व्यवस्था।  

         यह भारत का दुर्भाग्य ही हैं की यंहा की निति निर्धारकों ने समयनुसार  सविंधान का निर्माण किया और वो भारत की विकास में सहायक भी रहा।  लेकिन जब वर्तमान में हम शिक्षा और चिकित्सा में प्रतिभाओं को आरक्षण की आड़ में दम तोड़ते हुए देखते हैं तो समझ में आता हैं की यह व्यवस्था किसी भी सभ्य और समझदार समाज की नहीं हो सकती हैं।  हम सभी देख रहे हैं की नीट जैसी परीक्षा जिसमे 25  लाख युवाओं ने डॉक्टर बनने के सपने के लिए दिन रात मेहनत की और आरक्षण और वर्गीकरण के कारण जो प्रतिभाएं 25 लाख छात्र और छात्रों में 20 हजार रैंक प्राप्त करने के बावजूद भी प्रवेश से वंचित हैं और दूसरी तरफ 12 लाख की रैंक लाने वाले स्टूडेंट भी मैनेजमेंट सीट /आरक्षित सीट के नाम से डॉक्टर की डिग्री लेकर कल इस समाज में कैसी सेवाएं देंगे इसे हम  भली भांति समझ सकते हैं। क्या आपने सोचा हैं की युवराज सिंह से लेकर ऋषभ पंत तक क्यों विदेश में इलाज करने गए यही हाल अमीर लोगो का हैं क्यों ? क्योंकि उनको पता हैं की यंहा का सिस्टम एक सटीक समाधान देने में लाचार हैं। 720 में 300 अंक लाकर हम कैसा डॉक्टर तैयार करेंगे यह हम सब जानते हैं।

आरक्षण से बढ़ती हुई सामाजिक बीमारियां 

       आज हम भारत में आये दिन चिकित्सा  के फील्ड में महंगी होती चिकित्सा, ओर्गेंस स्मगलिंग , हॉस्पिटल्स में चिकित्सा के नाम पर लूट ,  नकली दवाइयों का कारोबार ,ड्रग्स माफिया , नशीली दवाइयों का कारोबार , मिलावट का बोलबाला यह सब की आशा ही रख सकते हैं क्योंकि हम अपनी नींव में ही कमजोर और लचीली ईंट रख रहे हैं।  यही हाल शिक्षा के फील्ड में हैं।  जो परिवार पैसा खर्च करके डिग्री लेंगे उन बच्चों से देश सेवा की आशा करना बेमानी होगी।  फिर शिवाजी की मूर्ति इंजीनियरिंग के नाम पर गिरेगी तो 15 -15  पूल बिहार में बारिश के नाम पर चढ़ जायेंगे। और भारत में बात बात पर सियासत करना आम बात हैं।  जबकि वास्तविकता यह हैं की ईमानदारी का अभाव हैं। संस्कारो का अकाल हैं। और इन सब का जिम्मेदार खुली आँखों से देखते हुए देश के हुकुमरान और यंहा की लचीली न्यायपालिका हैं के साथ यंहा की जनता हैं । 

        वास्तविकता को स्वीकार करना यंहा की जनता और राजनैतिक पार्टीयो में कोशो दूर  हैं।  इसलिए हम कह सकते हैं की 2047 तक विकसित भारत का सपना देखना गुनाह नहीं हैं लेकिन जब तक हम अपनी मूल शक्ति शिक्षा और चिकित्सा को दुरस्त करने के लिए प्रतिभा को प्रथम लाइन से पीछे की लाइन में धकेलने का काम करेंगे तब तक यंहा की प्रतिभा ऐसे ही दम तोड़ती रहेगी। फिर हम जब अच्छी शिक्षा और चिकित्सा की आशा करते हैं तो आम आदमी अपने आप को ठगा सा महसूस करता हैं।   हाल ही में 140 करोड़ के देश को ओलिंपिक में एक गोल्ड पदक के लिए तरसते हुए हम सब ने देखा हैं क्योंकि हम प्रतिभा का समान समारोह अपनी संस्था और राजनीती को चमकाने के लिए करते हैं।  ना की देश के मान समान के लिए यह छल हम अपने आप से कर रहे हैं।  और 2047 में हम विकसित देश बनेंगे यह सब झूंठा ख्वाब हैं।  बूलेट ट्रैन चलाने से देश विकसित नहीं होगा हमें आज भी जनरल डिब्बे में पशुओ की भांति जिन्दा जिन्दगीयो को देखते हैं।  

अराजकता की और बढ़ते कदम 

       वर्तमान हालत में यह कोई बड़ी बात नहीं की आने वाले समय यदि इन समस्याओ को दुरस्त नहीं किया गया तो देश में लोग इसके खिलाफ सड़को पे निकलेंगे और सरकार और सिस्टम को समझ नहीं आएगा की क्या करे।  इसलिए इस तरह के छात्र और छात्राओं को को निश्चित आर्थिक सहयोग देना चाहिए।  ओलिंपिक गेम्स में लोग आपकी प्रतिभा को देखते है ना की तुम्हारी योग्यता और जातपात को।  इसलिए भारतीय न्यायपालिका को इसमें सह्नज्ञान लेना चाहिए और प्रतिभाओ के साथ इन्साफ हो ऐसा सिस्टम पैदा करने के लिए सरकार  और समाज पर दबाब बनाना चाहिए। बांग्लादेश के हालत हम सब ने देखे हैं जंहा पर लोगो की मांग पूरी होने के बाद भी क्या हालत हुए हैं और देश को एकझटके में 20  साल पीछे धकेल दिया हैं।

 

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