सफलता की शुरुवात आराम की सीमा से होती हैं
बात बहुत पुरानी हैं। एकबार एक संतमहात्मा अपने शिष्य के साथ एक गांव से गुजर रहे थे दोपहर भी गुजरने वाला था । दोनों को बहुत तेज भूख लगी थी और थकान भी होने लगी थी। तभी पास में ही एक घर नजर आया । और दोनों घर के पास पहुंचे और दरवाजा खटखटाया। देखा की अंदर से फटे-पुराने कपड़े पहना एक आदमी बाहर आया । महात्मा ने उससे अपनी भूख की बात बताई और सवाल किया की कुछ खाने को मिल सकता है क्या? उस आदमी ने उन दोनों को अंदर आने को कहा और बैठा कर भोजन कराया । भोजन करते करते ही महात्मा ने कहा से उस आदमी से कहा की तुम्हारी जमीन बहुत उपजाऊ लग रही है, लेकिन फसलों को देखकर लगता है कि तुम खेत पर ज्यादा ध्यान ही नहीं देते। फिर तुम्हारा गुजारा कैसे होता है? आदमी ने उत्तर दिया- हमारे पास एक भैंस है, जो काफी दूध देती है। उसी से मेरा गुजर बसर हो जाता है। समय को देखते हुए रात होने लगी थी इसलिए महात्मा शिष्य सहित वहीं रुक जाने का निवेदन किया और उस व्यक्ति ने सहर्ष स्वीकार किया और रात्रि विश्राम के लिए वन्हीं पे रुक गए। मध्य रात्रि को उस महात्मा ने अपने शिष्य को उठाया और कहा- चलो हमें अभी ही यहां से निकलना होगा और इसकी भैंस भी हम साथ ले चलेंगे। ये बात सुनकर शिष्य चौंक गया और गुरु की बात उसे बिलकुल भी अच्छी नहीं लगी लेकिन करता क्या ! दोनों भैंस को साथ लेकर चुपचाप निकल गए। यह बात उस शिष्य के मन में खटकती रही की गुरु ने उसकी भैंस चोरी करके अच्छा नहीं किया। समय बीतता गया और कुछ सालों के बाद एक दिन शिष्य उस आदमी से मिलने का मन बनाकर उसके गांव पहुंचा गया। जब शिष्य उस खेत के पास से गुजर रहा था तो देखा खाली पड़े खेत अब फलों के बगीचों में बदल चुके थे उसे यकीन नहीं आ रहा था ।तभी वह आदमी सामने दिख गया। शिष्य ने उसके पास जाकर उसे बताया की सालों पहले मैं अपने गुरु के साथ आपसे मिला था और आदमी ने शिष्य को आदर पूर्वक बिठाया और बताने लगा की उस दिन मेरी भैंस खो गई। पहले तो समझ में नहीं आया कि क्या करूं। फिर जंगल से लकड़ियां काटकर उन्हें बाजार में बचने लगा जिससे कुछ पैसे मिले तो मैंने बीज खरीद कर खेतों में बो दिए ।और फसल अच्छी होने लगी और मेरे पास कुछ पैसों की बचत होने लगी। और उसी से मैंने फलों के बगीचे लगाने में इस्तेमाल किया। और अब काम बहुत ही अच्छा चल रहा है। और इस समय मैं इस इलाके में फलों का सबसे बड़ा व्यापारी बन गया हूं। कभी-कभी सोचता हूं उस रात मेरी भैंस न खोती तो यह सब न होता । शिष्य ने उससे पूछा, यह काम आप पहले भी तो कर सकते थे? तब वह बोला, उस समय मेरी जिंदगी बिना मेहनत के चल रही थी। मुझे कभी लगा ही नहीं कि मैं इतना कुछ कर सकता हूं।। "इसलिए व्यक्ति की क्षमता असीमित है केवल पंख फैलाने की देरी होती हैं और पल भर में जीवन बदल जाता हैं इसलिए भगवान रूपी महात्मा के हाथो भैंस चोरी होने का इंतजार नहीं करना चाहिए" More Stories....
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