! राजा का वनवासी को इनाम !
एक बार की बात हैं की एक राजा जंगल में शिकार का पीछा करते-करते राह भटक गया, जंगल बहुत ही घनघोर था। रास्ता साफ नहीं दिख पड़ता था। ऐसे में रात हो गई और जंगल के हिंसक पशु की डरावनी आवाजे सुनाई देने लगी। राजा जंगली जानवरों से बचने के लिए और रात्रि बिताने के लिए किसी आश्रय की तलाश करने लगा। पर घना जंगल होने के कारण उसको कुछ भी दिखाई नही दे रहा था तभी उसको एक उपाय सूझा और वो एक लंबे पेड़ पर चढ़कर देखा तो पूर्व दिशा में किसी झोंपड़ी से रोशनी दिखाई दि और राजा उसी दिशा में चल पड़ा और किसी वनवासी की झोपड़ी में जा पहुँचा।
राजा ने अपने आप को एक राहगीर बताते हुए उस व्यक्ति से एक रात बिताने के लिए लेने देने की प्रार्थना की। वनवासी बडे दिल वाला था, उसने प्रसन्नता पूर्वक ठहराया और घर में जो कुछ खाने को था देकर उसकी भूख बुझाई | स्वयं जमीन पर सोया और राजा को मेहमान मानकर अपनी चारपाई दे दी। राजा ने खाना खा कर भूख बुझाई और थकान मिटाई और गहरी नींद सोया गया।
राजा वनवासी की सहयोग पर मन ही मन बहुत प्रसन्न था । सवेरा होने पर उस वनवासी ने राजा को सही रास्ते वी दिशा बताई और राजा ने उस वनवासी से बिदाई ली व दोनों एक दूसरे से अलग अलग होने लगे। तो राजा को उस वनवासी का आतिथ्य का बदला चुकाने का मन आया परन्तु क्या दे? क्योंकि राजा को पता था की यह व्यक्ति अकेला रहता हैं कोई भी कीमती वस्तु इसके पास डाकू लुटेरे रहने नहीं देंगे इसलिए इसको कुछ ऐसा इनाम दिया जाए ताकि वो इसके पास सुरक्षित रह सके और जरूरत के अनुसार वो इस इनाम को अपने काम में ले सके।
उसी जंगल में राजा का एक विशाल चंदन का बाग था, उसमें चंदन के सैकड़ों पेड़ थे। राजा ने अपना पूरा परिचय उस व्यक्ति को दिया और अपने हाथ से लिखकर उसे चंदन उद्यान का मालिक बना दिया। वनवासी भी इससे बहुत खुश हुआ।
वनवासी लकड़ी बेचकर गुजारा करता था। इसने लकड़ी का कोयला बना कर बेचने में कम मेहनत तथा अधिक पैसा मिलने की जानकारी प्राप्त कर ली थी। और कोयला बना कर बेचने लगा । पेड़ अच्छे और बड़े थे। आसानी से कोयला बनने लगा। उसने एक के बजाय दो फेरे नगर में लगाने शुरू कर दीये ताकि आमदनी दुगनी होने लगे । इससे वनवासी बहुत प्रसन्न था। अधिक कमाई होने पर उसने अधिक सुविधा को चीज वस्तु खरीदनी शुरू कर दी और अधिक आराम व मस्ती से रहने लगा। कुछ समय बाद चंदन का बाग कोयला बन गया। अब मात्र एक ही पेड़ बचा था की एक दिन वर्षा होने से कोयला तो न बन सका । कुछ प्राप्त करने के लिए पेड़ से एक डाली काटी और उसे ही लेकर नगर गया। लकड़ी में से भारी सुगंध आ रही थी। खरीददारों ने समझ लिया यह चंदन है। कोयले की तुलना में दस गुना अधिक पैसा मिला। सभी उस लकड़ी की माँग करने लगे। कहा कि भीगी लकड़ी के कुछ कम दाम मिले हैं। सूखी होने पर उसकी और भी अधिक कीमत देंगे।वनवासी पैसे लेकर लौटा और मन ही मन विचार करने लगा। यह लकड़ी तो बहुत कीमती है। मैंने इसके कोयले बनाकर बेचने की भारी भूल की, यदि लकड़ी काटता बेचता रहता तो कितना धनाढ्य बन जाता और इतनी सम्पदा इकट्ठी कर लेता जो पीढ़ियों तक काम देती।
अब राजा के पास जाकर दुबारा मांगना तो उसे लगा की मूर्खता होगी तथा अब शरीर भी बुड्ढा हो गया था। कुछ अधिक पुरुषार्थ करने का उत्साह नहीं था। झाड़ियाँ काटकर कोयले बनाने और पेट पालने की वही पुरानी प्रक्रिया अपना ली और जैसे-तैसे गुजारा करने लगा। इसलिए जीवन निश्चित ही चंदन वन हैं इसकी हर टहनी बहुत कीमती है। इसे अज्ञानी बने रह कर कोयला नही बनाना चाहिए।। More Stories....
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